घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी के इंतजार के बीच महाशिवरात्रि पर्व पर सांप्रदायिक सौहार्द की सदियों पुरानी परंपरा को निभाया गया। पंडितों के सबसे बड़े पर्व हेरथ यानी महाशिवरात्रि पर्व पर मुस्लिम कुम्हारों के बनाए घड़ों में कश्मीरी पंडितों ने विधिवत वटुक पूजन किया। शिव परिवार और ऋषि मुनियों के नाम से घड़ों में अखरोट व पूजन सामग्री भरकर कलश स्थापित किया जाता है जिसे वटुक पूजन कहा जाता है।शुक्रवार को हेरथ के दिन घाटी में मौजूद कश्मीरी पंडित परिवारों ने वटुक पूजन किया। वहीं आज यानी कि शनिवार को मुस्लिम समुदाय के लोग कश्मीरी पंडितों के घर जाकर सलाम पेश करेंगे।
हेरथ और सलाम की यह परंपरा कश्मीर घाटी में आतंकवाद शुरू होने से पूर्व तक बड़े पैमाने पर प्रचलन में थी। लेकिन कश्मीरी पंडितों के घाटी से विस्थापित होने के बाद से गिने-चुने परिवार ही इस परंपरा को आगे बढ़ा पा रहे हैं। कश्मीरी पंडित भूषण बजाज ने बताया कि गिने चुने पंडित परिवार ही घाटी में रहते हैं। इसके चलते पर्व की पहले जैसी रौनक नहीं है लेकिन कश्मीर में सांप्रदायिक भाईचारा कायम है। सभी चाहते हैं कि कश्मीर अपने पुराने दिनों में लौट आए।
शंकराचार्य मंदिर में हुए विशेष हवन में कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों के अलावा पर्यटकों और सुरक्षाकर्मियों ने भी भाग लिया। जवानों ने अपनी-अपनी यूनिट में विशेष पूजा-अर्चना की। लंगर का भी विशेष इंतजाम किया गया था।